बता दें कि समलैंगिक संबंध को अपराध बताने वाली धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। दरअसल इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को अब अपराध की श्रेणी में नहीं माना जाएगा। पांच जजों की संवैधानिक पीठ का यह फैसला न सिर्फ एलजीबीटी समुदाय के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है। दरअसल कोर्ट के इस फैसले ने लंबे समय से चल रहे भेदभाव और कलंक के खिलाफ लड़ाई को एक नई दिशा दी है और साथ ही इस को समानता और मानवाधिकारों की जीत के रूप में देखा जा रहा है। आमतौर पर कार्यकर्ताओं का मानना है, कि कोर्ट का यह फैसला दरअसल सामाजिक सोच को बदलने में मदद करेगा और ऐसे लोगों को अपनी पहचान खुलकर बता के जीने का हक देगा। ये तो हुई एलजीबीटी समुदाय के हक की बात, पर आमतौर पर यहां हम आपको यह बताने की कोशिश कर रहे हैं, कि एलजीबीटी समुदाय के लोगों को कानूनी मान्यता मिलने के बावजूद भी उनको कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और इसका समाधान क्या हो सकता है।
दरअसल एक शोध से पता चला है, कि एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) वाले लोगों को सेहत संबंधी असमानताओं का काफी ज्यादा सामना करना पड़ता है, बता दें कि विशेष रूप से जिस का कारण सामाजिक कलंक, भेदभाव और उनके नागरिक और मानवाधिकारों से इनकार किया जाना है। दरअसल इस तरह की परिस्थितियों का बुरा प्रभाव उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, आमतौर पर जिसकी वजह से आम आबादी की तुलना में इस समुदाय में आत्महत्या की प्रवृत्ति, मानसिक विकार और नशे की आदतें काफी ज्यादा देखी जाती हैं।
असल में एलजीबीटी समुदाय के लोगों में आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा काफी ज्यादा देखा गया है, आमतौर पर इसलिए इस दौरान यह बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है, कि एलजीबीटी समुदाय के लोगों की भावनाओं को अच्छे तरीके से समझा जाये और साथ ही उन को जरूरी समर्थन दिया जाये। दरअसल उसी प्रकार जैसे कोई साधारण बच्चा अपने स्कूल में अच्छे अंक प्राप्त करने की कोशिश करता है, तो इस दौरान उस का परिवार और समाज के लोग उसका समर्थन करते हैं, तो वैसे ही एलजीबीटी किशोरों को भी सहारे की आवश्यकता होती है। कानूनी मान्यता मिलने के बावजूद क्या फिर भी एक आम एलजीबीटी टीनएजर के पास ये सब कुछ होगा, खुद को समझने के संघर्ष के अलावा। दरअसल अंतर यह है, कि इस दौरान उनको पढ़ाई या फिर उपलब्धियों के अलावा, अपनी पहचान और जेंडर को समझने की चुनौती का भी सामना करना पड़ता है। इस दौरान अक्सर उनके मन में इस तरीके के सवाल उठते रहते हैं, कि क्या वे सामान्य हैं? क्या उन का जेंडर भी बाकी लोगों की तरह ही है? या फिर वह अपनी उलझनों का समाधान किस से प्राप्त करें? आमतौर पर इस तरह के ना जाने कितने सवाल हैं, जो एलजीबीटी समुदाय के लोगों को किशोरावस्था के दौरान उनके भीतर असुरक्षा और चिंता को पैदा करते हैं, जो धीरे-धीरे उनकी मानसिक बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
एलजीबीटी समुदाय में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं
बता दें कि डॉक्टरों के अनुसार, समलैंगिकता कोई मानसिक विकार नहीं है। लेकिन सामाजिक दबाव, भेदभाव और अस्वीकार्यता की वजह से एलजीबीटी समुदाय के कुछ मानसिक स्थितियां और अन्य मुद्दे हैं, जो इस आबादी के बीच उच्च दर पर देखे जाते हैं, आमतौर पर जो कि बहुत आम होते हैं।
1. डिप्रेशन
आमतौर पर इस समुदाय में डिप्रेशन की समस्या काफी ज्यादा आम है, क्योंकि वह अपने से अलग स्वभाव वाले लोगों के साथ अपने दिल की बात को बयां नहीं कर पाते हैं और इतना ही नहीं वह लोगों से अच्छे तरीके से घुलमिल भी नहीं पाते हैं।
2. चिंता
दरअसल उनके मन में उठ रहे अलग-अलग सवालों और उसके जवाबों को खोजने के लिए चिंतित रहते हैं। आमतौर पर कई लोगों का यह भी कहना है, कि उनको अपने प्रियजनों के साथ बहुत ज्यादा लड़ना पड़ता है, उसके लिए जो उनके मन में विचार चल रहे होते हैं।
3. स्वीकरोक्ति
आपको बता दें कि कई बार उनको समाज में स्वीकार्यता प्राप्त नहीं हो पाती है। फिर चाहे फिर वो स्कूल और कॉलेज हो, कार्यस्थल हो, रिश्तेदारों के बीच हो या फिर किसी और जगह पर, दरअसल वहां पर उनको उपेक्षा और तिरस्कार सहना पड़ता है।
4. बॉडी इमेज से संबंधित मुद्दे
दरअसल कई ट्रांसजेंडर इस तरह के होते हैं, जो अपनी बॉडी इमेज को लेकर खुद से ही लड़ते रहते हैं। आमतौर पर वह अपने से अलग लिंग के प्रति अपनी इच्छाओं को परखने की कोशिश करते रहते हैं, कि क्या उनकी भावनाएं (इमोशन्स) बाकी लोगों की तरह सामान्य हैं, या फिर नहीं।
5. अस्वीकार किए जाने का डर
वास्तव में विशेष रूप से समाज में ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति अस्वीकार की भावना को काफी ज्यादा देखा जाता है। बता दें कि अक्सर माता-पिता भी ऐसे बच्चों को स्वीकार करने के बजाय और उनका पालन पोषण करने के बजाए, उन बच्चों से काफी ज्यादा दूरी बना लेते हैं।
6. रिश्ते के मुद्दे
अक्सर एलजीबीटी समुदाय के लोगों को रिश्तों से जुड़ी समस्याओं की वजह से मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इन समस्याओं का समाधान क्या है?
आमतौर पर अगर आप भी किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जो एलजीबीटी समुदाय के साथ जुड़ा हुआ है, तो आप उनके प्रति दया या फिर तरस की भावना बिलकुल भी न रखें, बल्कि उनको सम्मान के साथ स्वीकार करें। दरअसल उनके प्रति अपने व्यवहार को सामान्य रखें। जिस प्रकार आप जबरदस्ती कोई रंग और फूड को नहीं चुन सकते हैं। साथ ही जिस तरह आप कामुकता और आकर्षण को भी किसी के दबाव में स्वीकार नहीं कर सकते हैं। तो उसी प्रकार से एलजीबीटी समुदाय के लोगों में भी यह सब चीजें प्राकृतिक होती हैं, दरअसल उनकी भी अपनी यौन आकांक्षाएं होती हैं। आमतौर पर जिन को बिल्कुल भी बदला नहीं जा सकता है। बता दें कि सिर्फ उनकी यौन प्राथमिकताओं की वजह से उन को पालन-पोषण और बचपन के अनुभवों से वंचित नहीं रखा जा सकता है।
निष्कर्ष : डॉक्टरों के अनुसार, समलैंगिकता कोई मानसिक विकार नहीं है। पर शोध से पता चला है, कि एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) वाले लोगों को सेहत संबंधी असमानताओं का काफी ज्यादा सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से जिस का कारण सामाजिक कलंक, दबाव, भेदभाव और उनके नागरिक और मानवाधिकारों से इनकार किया जाना है। इस दौरान एलजीबीटी लोगों को डिप्रेशन, चिंता, स्वीकरोक्ति, बॉडी इमेज से संबंधित मुद्दे, अस्वीकार किए जाने का डर और रिश्ते के मुद्दे से जुड़ी कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिसकी वजह से आम आबादी की तुलना में इस समुदाय में आत्महत्या की प्रवृत्ति, मानसिक विकार और नशे की आदतें काफी ज्यादा देखी जाती हैं। इसलिए एलजीबीटी समुदाय के लोगों की भावनाओं को अच्छे तरीके से समझा और साथ ही उन को जरूरी समर्थन दिया जाना चाहिए। साथ ही उनके प्रति दया या तरस की भावना बिलकुल भी न रखें, बल्कि उन को सम्मान के साथ स्वीकार करें। अगर आपको भी इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी है और अगर आप भी ट्रांसजेंडर हो और आप भी अपनी सर्जरी को करवाना चाहते हैं, तो आप आज ही वीजेएस ट्रांसजेंडर क्लीनिक में जाकर अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके विशेषज्ञों से इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।